विद्युत कर्मचारी संयुक्त संघर्ष समिति, उत्तरप्रदेश के केंद्रीय पदाधिकारियों ने आज प्रतापगढ़ में आम सभा की।
विद्युत कर्मचारी संयुक्त संघर्ष समिति, उत्तर प्रदेश ने मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ से अपील की है कि अन्य प्रांतों में विफल हो चुके विद्युत वितरण के निजीकरण के प्रयोग को देश के सबसे बड़े प्रांत उत्तरप्रदेश में न थोपा जाय।
विद्युत कर्मचारी संयुक्त संघर्ष समिति, उत्तरप्रदेश के केंद्रीय पदाधिकारियों ने आज प्रतापगढ़ में आम सभा की।
डा० शक्ति कुमार पाण्डेय
राज्य संवाददाता
ग्लोबल भारत न्यूज
प्रतापगढ़, 3 जनवरी।
विद्युत कर्मचारी संयुक्त संघर्ष समिति, उत्तर प्रदेश ने मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ से अपील की है कि अन्य प्रांतों में विफल हो चुके विद्युत वितरण के निजीकरण के प्रयोग को देश के सबसे बड़े प्रांत उत्तरप्रदेश में न थोपा जाय।
संघर्ष समिति के केंद्रीय पदाधिकारियों ने आज प्रतापगढ़ में आम सभा कर विद्युत वितरण के निजीकरण के विरोध में जन जागरण अभियान जारी रखा।
संघर्ष समिति ने कहा है कि यदि जल्दबाजी में निजीकरण हेतु सलाहकार नियुक्त करने के लिए बिडिंग प्रक्रिया शुरू की गई तो उसी दिन बिजली कर्मी काली पट्टी बांधकर विरोध दिवस मनाएंगे।
संघर्ष समिति के पदाधिकारियों ने बताया कि वर्ष 2014 में चार शहरों गाजियाबाद, मेरठ,वाराणसी और कानपुर के निजीकरण का तत्कालीन सरकार ने निर्णय लिया था।
इस हेतु कंसल्टेंट नियुक्त करने हेतु बिडिंग की गई थी और मेसर्स मेकॉन को कंसल्टेंट नियुक्त किया गया था। इसके विरुद्ध नियामक आयोग में याचिका हुई।
नियामक आयोग ने अंततः यह पाया कि निजीकरण का पी पी पी मॉडल जनहित में नहीं है। सरकार को यह समझ आ गया कि निजीकरण के विफल प्रयोग को उप्र में लागू करने से कोई लाभ नहीं है और सरकार ने निजीकरण का निर्णय वापस लिया।
संघर्ष समिति ने कहा कि दस साल बाद फिर वही प्रक्रिया प्रारंभ करने और अनावश्यक तौर पर कंसल्टेंट पर पैसा खर्च करने का कोई औचित्य नहीं है। जब पी पी पी मॉडल जनहित में नहीं है तो इसे उप्र में क्यों थोपा जा रहा है।
संभवतः इसी कारण 05 अप्रैल 2018 और 06 अक्टूबर 2020 को संघर्ष समिति के साथ हुए लिखित समझौते में स्पष्ट कहा गया है कि उप्र में ऊर्जा क्षेत्र में कहीं भी कोई निजीकरण कर्मचारियों को विश्वास में लिए बिना नहीं किया जाएगा।
संघर्ष समिति के पदाधिकारियों ने कहा कि वर्ष 1999 में उड़ीसा में बिजली का निजीकरण किया गया था। एक वर्ष बाद वर्ष 2001में उड़ीसा में सुपर साइक्लोन आया जिससे उड़ीसा के तटवर्ती क्षेत्रों में बिजली का ढांचा पूरी तरह ध्वस्त हो गया। इस क्षेत्र में काम कर रही अमेरिका की ए ई एस कम्पनी ने बिजली का ध्वस्त हुआ ढांचा ठीक करने से मना कर दिया और कंपनी वापस अमेरिका भाग गई।
16 वर्ष बाद वर्ष 2015 में उड़ीसा के विद्युत नियामक आयोग ने अन्य तीन कंपनियों में काम कर रही रिलायंस पावर के सभी तीनों लाइसेंस पूर्ण विफलता के चलते रद्द कर दिए।
निजीकरण का प्रयोग महाराष्ट्र में औरंगाबाद, जलगांव और नागपुर में विफल रहा और सरकार को निजीकरण के करार रद्द करने पड़े। बिहार में भागलपुर, समस्तीपुर और गया में निजीकरण विफल हो गया। मप्र में उज्जैन, सागर और ग्वालियर में विफलता के चलते निजीकरण रद्द किया गया।
उप्र में ग्रेटर नोएडा में विफलता के चलते निजी कम्पनी का लाइसेंस निरस्त कराने हेतु उप्र सरकार ने मा सर्वोच्च न्यायालय में मुकदमा कर रखा है। आगरा में निजीकरण के विफल प्रयोग पर कई बार सी ए जी गम्भीर टिप्पणी पर चुका है और इस करार को रद्द करने हेतु उपभोक्ता मंच भी आवाज उठाते रहे हैं।
संघर्ष समिति ने कहा कि पूर्वांचल विद्युत वितरण निगम और दक्षिणांचल विद्युत वितरण निगम के निजीकरण का पॉवर कारपोरेशन प्रबन्धन का निर्णय प्रदेश के हित में नहीं है। प्रदेश के 42 जनपदों की बिजली व्यवस्था जल्दबाजी में निजी घरानों को सौंपने से उपभोक्ताओं पर पड़ने वाले भारी प्रतिकूल प्रभाव का आंकलन करना जरूरी है।
संघर्ष समिति ने एक बार पुनः कहा कि बिजली कर्मियों को माननीय मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ जी पर पूरा विश्वास है और उनके नेतृत्व में लगातार सुधार हो रहा है। वर्ष 2016-17 में 41 प्रतिशत ए टी एंड सी हानियां थीं जिन्हें घटाकर वर्ष 2023-24 में 17 प्रतिशत कर दिया गया है। एक वर्ष बाद राष्ट्रीय मानक 15 प्रतिशत से कम ए टी एंड सी हानियां हो जाएंगी।
निजीकरण के विरोध में जन जागरूकता अभियान के तहत संघर्ष समिति के केंद्रीय पदाधिकारियों ने आज प्रतापगढ़ और प्रयागराज में आम सभा की। प्रयागराज में 05 जनवरी को बिजली पंचायत आयोजित की गई है।